मोदीजी को फंसाने चला ये पत्रकार लेकिन हुआ ऐसा खुलासा कि…
देश की पत्रकारिता में आजकल एक ग्रुप ऐसा है जो सेक्युलर की छवि की आड़ लेता है और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश जैसे आरोप लगाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करने में जुटा हुआ होता है। देश में ऐसा ट्रेंड चल रहा है कि तथाकथित सेक्युलर पत्रकारों का यह समूह अपनी खामियों को छिपाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को निशाना बनाने से भी नहीं चूकता है। उदाहरण के तौर पर बीते दिनों कुछ ऐसे मामले आए जिनमें कुछ शीर्ष स्तर पर बैठे पत्रकारों ने अपनी नौकरी जाने का ठीकरा मोदी पर या भाजपा पर फोड़ा। क्या निखिल वागले के टीवी 9 पर शो बंद हो जाने को लेकर उपजे विवाद से भी यही साबित नहीं होता है। टीवी 9 पर रात नौ बजे से होने वाले वरिष्ठ पत्रकार के शो को प्रबंधन ने रोक दिया तो इसका ठीकरा भी भाजपा सरकार और मोदी पर फोड़ दिया गया है। टीआरपी के विशेषज्ञ पत्रकारों में से विनोद कापड़ी ने जब अपने फेसबुक पोस्ट में यह कहा कि वागले के शो को रेटिंग गिरने की वजह से बंद किया गया तो असलियत का खुलासा हुआ। वरना वागले तो शहीदों की श्रेणी में खुद को दर्ज कराने में जुटे हुए थे। उन्होंने तो शो के बंद किए जाने को अपने साथ सरकार के इशारे पर हुई नाइंसाफी साबित करना शुरू कर दिया था। वागले ट्विटर पर इसको लेकर हमदर्दी बटोरने में जुटे हुए थे और काफी हद तक इसमें कामयाब भी हुए थे। अभिव्यक्ति की आजादी पर एक और प्रहार के तौर पर पेश किए जा रहे थे। सवाल यह उठता है कि आखिर यह सब कहां जाकर थमेगा। इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकिल वीकली ईपीडब्लू मैगजीन के संपादक पद से परंजय गुहाठाकुरता ने अभी हाल ही में इस्तीफा दिया और इसे उनके एक बिजनेस समूह के खिलाफ लिखे गए आर्टिकल पर आए लीगल नोटिस से जोड़कर पेश किया गया। बताया तो यह जा रहा है कि परंजय गुहाठाकुरता और प्रबंधन के बीच मसला कुछ और ही था जबकि इसमें कहीं न कहीं सरकार को घसीटा जाने लगा था। परंजय गुहाठाकुरता के आर्टिकल में आरोप था कि केंद्र की मोदी सरकार ने एक बिजनेस समूह को फायदा पहुंचाने के लिए कुछ कानूनी हेरफेर किया। जबकि मीडिया में आ रहीं रिपोर्ट कह रही हैं कि परंजय गुहाठाकुरता का जाना किसी और मामले से जुड़ा हुआ है। एबीपी न्यूज, जी न्यूज और इंडिया टीवी में भी कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने अपनी विदाई को लेकर मोदी सरकार को ही कहीं न कहीं कठघरे में खड़ा किया था। कहा गया उनकी अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही है। बाद में मसला कुछ और ही निकला क्योंकि मीडिया समूहों ने साफ बयान जारी किया कि उनकी विदाई नीतिगत आधार पर की गई है और इसमें ऐसा कुछ नहीं है जैसा पेश किया जा रहा है।
ठीक यही ईपीडब्लू मैगजीन के प्रबंधन ने भी परंजय गुहाठाकुरता के मामले में बयान जारी किया था। सूत्रों कें अनुसार, ईपीडब्लू में परंजय गुहाठाकुरता के संपादक बने रहने से प्रबंधन कुछ नाखुश चल रहा था। बताया जा रहा है कि ईपीडब्लू इसलिए भी खुश नहीं था कि मैगजीन में राजनीतिक संतुलन की कमी होने लगी थी और पाठकों की तरफ से ऐसा फीडबैक आ रहा था। जबकि इसे कुछ कथित सेक्युलर साइटों ने ऐसे पेश किया जैसे कि ठाकुर्ता को प्रबंधन के दबाव में इस्तीफा देना पडा क्योंकि एक बिजनेस हाउस की तरफ से आए कानूनी नोटिस से वह डर गया।
सबसे ताजा मामला तो निखिल वागले की टीवी 9 चैनल से विदाई का है और यह क्यों हुई इसका खुलासा विनोद कापड़ी ने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए कर दिया।
कुछ दिनों पहले मराठी टीवी चैनल के वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले के टीवी9 पर आने वाले शो के बंद होने की बाद मीडिया में चर्चा गर्म हो गई। इस शो को बंद होने के लिए सीधे तौर पर वागले ने संघ और भाजपा के साथ अमित शाह और मोदी को जिम्मेवार ठहराया। पत्रकारिता में अब यह एक आम किस्म का चलन हो गया है। जिसे देखकर लगने लगा है कि गिरती टीआरपी की वजह से शो का बंद होना सीधे तौर पर भाजपा और संघ से जोड़ दिया जाता है। जबकि पत्रकारिता का एक धड़ा इस तरह के कामों में सबसे आगे है। देश में कहीं भी किसी भी तरह की समस्या हो उसके लिए वह सबसे पहले मोदी, भाजपा और संघ को जिम्मेवार बताकर अपने बचाव का आसान रास्ता ढूंढ निकालते है। निखिल वागले ने भी कुछ ऐसा ही किया है।
कई वरिष्ठ पत्रकारों ने निखिल के पक्ष में ट्वीट किए थे। निखिल ने भी खुलकर कहा कि उनका शो राजनैतिक दबाव की वजह से बंद किया गया है। पर अब वरिष्ठ पत्रकार विनोद कापड़ी की एक पोस्ट ने निखिल की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठा दिए है। कापड़ी की पोस्ट जो उन्होंने फेसबुक पर डाली है जिसमें वागले के शो की गिरती टीआरपी शो के बंद होने की वजह है आपके सामने रख रहे हैं।
नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर कैसे कैसे खेल हो रहे हैं और कैसे लोग खुद को ज़बरन शहीद बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ये सबकुछ आपको इस पोस्ट के जरिए समझ में आ जाएगा।
निखिल वागले की TV 9 मराठी से विदाई हो गई। ये वही निखिल वागले है जिनके अखबार पर 90 के दशक में शिवसेना के गुंडों ने हमला किया था।लेकिन वागले तब भी डरे नहीं थे। लेकिन वागले की निडर और निष्पक्ष पत्रकार ये भ्रम अब जाकर टूटा है।
निखिल वागले झूठ फैलाकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रहे हैं। और यह बात विनोद कापड़ी के इस पोस्ट से साबित हो गया है। आप सब जानते होंगे कि वागले की हाल ही में TV9 मराठी से विदाई हुई है और इस विदाई को उन्होंने जिस तरह से भाजपा और मोदी से जोड़कर प्रचारित किया, वो हैरान तो करता ही है।
सच ये है कि वागले की TV9 मराठी से विदाई और उसमें मोदी- भाजपा की भूमिका की वागले की फैलाई कहानी ना सिर्फ पूरी तरह झूठी है बल्कि मनगढ़ंत भी है।
विनोद कापड़ी ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि मेरा एक 21 साल पुराना दोस्त है रविप्रकाश, जो कि TV9 group का CEO भी है और promoter भी। मई के महीने में रवि ने मुझसे कहा कि यार विनोद तुम मुंबई आते जाते रहते हो, ज़रा कुछ वक्त निकाल कर टीवी 9 मराठी की टीम से मिल लो और देख लो कि चैनल में क्या दिक़्क़त है। सात आठ साल हो गए – कुछ बात बन नहीं रही। रवि पुराना दोस्त है, मेहनती है, जुझारू है- तो मना नहीं कर पाया। सोचा कि फिल्म के काम के दौरान जब समय मिलेगा तो जाऊंगा। इसी दौरान जून में धाकड़ रिपोर्टर रहे उमेश कुमावत ने बतौर मैनेजिंग एडिटर join कर लिया। उमेश से मैंने पूरे चैनल की FPC ( fixed Programing chart ) और पिछले तीन चार हफ़्तों की रेटिंग मांगी।
रेटिंग का अध्ययन करके पता चला कि चैनल लगातार चार नंबर पर है, तकरीबन हर शो की रेटिंग खराब है और सबसे बुरा हाल है निखिल वागले के शो Sade Tod का। मैंने टीम के साथ बैठकर नई FPC को तैयार किया और सुझाव दिया कि वागले के शो को रात नौ से दस बजे के बजाय आप शाम पांच से छह बजे करो। और नई FPC 21 जून से लागू करो।
21 जून से नई FPC लागू हो गई और दो ही हफ़्ते में चैनल नंबर चार से नंबर तीन पर आ गया।FPC में सिर्फ एक ही बदलाव नहीं हो पाया और वो था निखिल वागले का शो। वागले जी ने 19 जून को उमेश से कहा कि उन्हें एक महीने का और वक्त दिया जाए, वो शो को और बेहतर और आक्रामक बना रहे हैं। वागले का सम्मान करते हुए उन्हें एक महीने का और समय दिया गया। पर सुधार के बजाय रेटिंग और गिरती रही। इतना बुरा हाल कि आखिरी के आठ हफ़्तों में पांच हफ़्ते तो वागले का शो Top 100 में भी नहीं आ पाया ( pls check BARC ratings Marathi News Channels week 19- week 28) ।
इसके बावजूद उमेश ने ठीक एक महीने बाद 19 July को उनसे फिर प्यार से कहा कि अब आपके शो की टाइमिंग बदलनी ही होगी लेकिन वागले ने फ़रमान सुना दिया कि मैं शो करूंगा तो सिर्फ रात के नौ बजे, वर्ना नहीं करूंगा और अगले दिन हम क्या देखते हैं कि वागले Twitter में कूद पड़े कि : ” देखिए मेरे साथ क्या नाइंसाफ़ी हो गई , TV 9 ने अचानक मेरा शो बंद कर दिया..मेरे शो को सेंसर कर दिया गया ”
और फिर देखते ही देखते तमाम “liberal और Secular” पत्रकारों की पूरी बटालियन Twitter में मोर्चा लेकर खड़ी हो गई कि देखिए भाजपा और मोदी ने एक और निष्पक्ष और निडर आवाज़ को चुप करा दिया। कुछ English websites में ख़बरें भी छपने लगीं और इन सबके बीच निखिल वागले सच जानते हुए भी बहुत भोले बनकर
दूर से बैठा मैं ये सब देख रहा था और बेहद दुखी था कि कैसे मेरा एक हीरो मेरे ही सामने दम तोड़ रहा है। वागले के शो के बंद होने का दूर-दूर तक ना मोदी से वास्ता था और ना भाजपा से। पर दो दिन में Twitter पर ऐसा माहौल बना दिया गया कि : “मोदी ने एक बार फिर लोकतंत्र की हत्या कर दी। मोदी हर उस आवाज़ को दबा रहे हैं जो मोदी के विरोध में उठती है। ”
देखिए बाकी आवाज़ों के बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मैं जानता नहीं पर वागले के शो पर मैं पूरे विश्वास और दावे के साथ लिख रहा हूं और डंके की चोट पर कह रहा हूं कि शो बंद होने का एकमात्र कारण मैं था और मैं भी इसलिए क्योंकि मेरी जगह कोई भी व्यक्ति बदहाल चल रहे शो को या तो बंद करने का सुझाव देता या टाइमिंग बदलने की बात करता। जो मैंने किया। और मुझे खुलेआम ये मानने में कोई संकोच नहीं है। हो सकता है कि इस पोस्ट के बाद कुछ लोग मुझे कहें कि मैं भी मोदी की गोद में जाकर बैठ गया। कहने वाले कहते रहे, मुझे अपना सच पता है और वो मै लिखता रहूंगा।
निखिल वागले, आपने झूठ फैलाकर और झूठ के नाम पर खुद को शहीद बनाकर अच्छा नहीं किया। आपने मेरा एक हीरो मुझ से छीन लिया। Twitter पर मैं आपको 5-6 साल से फ़ॉलो कर रहा हूं। आपके tweets को आंख बंद करके RT करता रहा, यही सोचकर कि बाल ठाकरे से लड़ने वाला आदमी निडर और निष्पक्ष ही होगा लेकिन अब खुद को प्रासंगिक बनाने के लिए जिस तरह आप झूठ का सहारा ले रहे हैं , वो व्यक्ति मेरा हीरो नहीं हो सकता।
प्लीज़ मोदी के कंधे पर बंदूक़ रखकर खुद पर ही गोली चलाना बंद कीजिए । कुछ दिन के लिए आप शहीद ज़रूर बन जाओगे लेकिन मेरे जैसे आपको चाहने वालों का जब भ्रम टूटेगा तो आपकी बची खुची विश्वसनीयता भी ख़त्म हो जाएगी।
देश की पत्रकारिता में आजकल एक ग्रुप ऐसा है जो सेक्युलर की छवि की आड़ लेता है और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश जैसे आरोप लगाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करने में जुटा हुआ होता है। देश में ऐसा ट्रेंड चल रहा है कि तथाकथित सेक्युलर पत्रकारों का यह समूह अपनी खामियों को छिपाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को निशाना बनाने से भी नहीं चूकता है। उदाहरण के तौर पर बीते दिनों कुछ ऐसे मामले आए जिनमें कुछ शीर्ष स्तर पर बैठे पत्रकारों ने अपनी नौकरी जाने का ठीकरा मोदी पर या भाजपा पर फोड़ा। क्या निखिल वागले के टीवी 9 पर शो बंद हो जाने को लेकर उपजे विवाद से भी यही साबित नहीं होता है। टीवी 9 पर रात नौ बजे से होने वाले वरिष्ठ पत्रकार के शो को प्रबंधन ने रोक दिया तो इसका ठीकरा भी भाजपा सरकार और मोदी पर फोड़ दिया गया है। टीआरपी के विशेषज्ञ पत्रकारों में से विनोद कापड़ी ने जब अपने फेसबुक पोस्ट में यह कहा कि वागले के शो को रेटिंग गिरने की वजह से बंद किया गया तो असलियत का खुलासा हुआ। वरना वागले तो शहीदों की श्रेणी में खुद को दर्ज कराने में जुटे हुए थे। उन्होंने तो शो के बंद किए जाने को अपने साथ सरकार के इशारे पर हुई नाइंसाफी साबित करना शुरू कर दिया था। वागले ट्विटर पर इसको लेकर हमदर्दी बटोरने में जुटे हुए थे और काफी हद तक इसमें कामयाब भी हुए थे। अभिव्यक्ति की आजादी पर एक और प्रहार के तौर पर पेश किए जा रहे थे। सवाल यह उठता है कि आखिर यह सब कहां जाकर थमेगा। इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकिल वीकली ईपीडब्लू मैगजीन के संपादक पद से परंजय गुहाठाकुरता ने अभी हाल ही में इस्तीफा दिया और इसे उनके एक बिजनेस समूह के खिलाफ लिखे गए आर्टिकल पर आए लीगल नोटिस से जोड़कर पेश किया गया। बताया तो यह जा रहा है कि परंजय गुहाठाकुरता और प्रबंधन के बीच मसला कुछ और ही था जबकि इसमें कहीं न कहीं सरकार को घसीटा जाने लगा था। परंजय गुहाठाकुरता के आर्टिकल में आरोप था कि केंद्र की मोदी सरकार ने एक बिजनेस समूह को फायदा पहुंचाने के लिए कुछ कानूनी हेरफेर किया। जबकि मीडिया में आ रहीं रिपोर्ट कह रही हैं कि परंजय गुहाठाकुरता का जाना किसी और मामले से जुड़ा हुआ है। एबीपी न्यूज, जी न्यूज और इंडिया टीवी में भी कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने अपनी विदाई को लेकर मोदी सरकार को ही कहीं न कहीं कठघरे में खड़ा किया था। कहा गया उनकी अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही है। बाद में मसला कुछ और ही निकला क्योंकि मीडिया समूहों ने साफ बयान जारी किया कि उनकी विदाई नीतिगत आधार पर की गई है और इसमें ऐसा कुछ नहीं है जैसा पेश किया जा रहा है।
ठीक यही ईपीडब्लू मैगजीन के प्रबंधन ने भी परंजय गुहाठाकुरता के मामले में बयान जारी किया था। सूत्रों कें अनुसार, ईपीडब्लू में परंजय गुहाठाकुरता के संपादक बने रहने से प्रबंधन कुछ नाखुश चल रहा था। बताया जा रहा है कि ईपीडब्लू इसलिए भी खुश नहीं था कि मैगजीन में राजनीतिक संतुलन की कमी होने लगी थी और पाठकों की तरफ से ऐसा फीडबैक आ रहा था। जबकि इसे कुछ कथित सेक्युलर साइटों ने ऐसे पेश किया जैसे कि ठाकुर्ता को प्रबंधन के दबाव में इस्तीफा देना पडा क्योंकि एक बिजनेस हाउस की तरफ से आए कानूनी नोटिस से वह डर गया।
सबसे ताजा मामला तो निखिल वागले की टीवी 9 चैनल से विदाई का है और यह क्यों हुई इसका खुलासा विनोद कापड़ी ने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए कर दिया।
कुछ दिनों पहले मराठी टीवी चैनल के वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले के टीवी9 पर आने वाले शो के बंद होने की बाद मीडिया में चर्चा गर्म हो गई। इस शो को बंद होने के लिए सीधे तौर पर वागले ने संघ और भाजपा के साथ अमित शाह और मोदी को जिम्मेवार ठहराया। पत्रकारिता में अब यह एक आम किस्म का चलन हो गया है। जिसे देखकर लगने लगा है कि गिरती टीआरपी की वजह से शो का बंद होना सीधे तौर पर भाजपा और संघ से जोड़ दिया जाता है। जबकि पत्रकारिता का एक धड़ा इस तरह के कामों में सबसे आगे है। देश में कहीं भी किसी भी तरह की समस्या हो उसके लिए वह सबसे पहले मोदी, भाजपा और संघ को जिम्मेवार बताकर अपने बचाव का आसान रास्ता ढूंढ निकालते है। निखिल वागले ने भी कुछ ऐसा ही किया है।
कई वरिष्ठ पत्रकारों ने निखिल के पक्ष में ट्वीट किए थे। निखिल ने भी खुलकर कहा कि उनका शो राजनैतिक दबाव की वजह से बंद किया गया है। पर अब वरिष्ठ पत्रकार विनोद कापड़ी की एक पोस्ट ने निखिल की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठा दिए है। कापड़ी की पोस्ट जो उन्होंने फेसबुक पर डाली है जिसमें वागले के शो की गिरती टीआरपी शो के बंद होने की वजह है आपके सामने रख रहे हैं।
नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर कैसे कैसे खेल हो रहे हैं और कैसे लोग खुद को ज़बरन शहीद बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ये सबकुछ आपको इस पोस्ट के जरिए समझ में आ जाएगा।
निखिल वागले की TV 9 मराठी से विदाई हो गई। ये वही निखिल वागले है जिनके अखबार पर 90 के दशक में शिवसेना के गुंडों ने हमला किया था।लेकिन वागले तब भी डरे नहीं थे। लेकिन वागले की निडर और निष्पक्ष पत्रकार ये भ्रम अब जाकर टूटा है।
निखिल वागले झूठ फैलाकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रहे हैं। और यह बात विनोद कापड़ी के इस पोस्ट से साबित हो गया है। आप सब जानते होंगे कि वागले की हाल ही में TV9 मराठी से विदाई हुई है और इस विदाई को उन्होंने जिस तरह से भाजपा और मोदी से जोड़कर प्रचारित किया, वो हैरान तो करता ही है।
सच ये है कि वागले की TV9 मराठी से विदाई और उसमें मोदी- भाजपा की भूमिका की वागले की फैलाई कहानी ना सिर्फ पूरी तरह झूठी है बल्कि मनगढ़ंत भी है।
विनोद कापड़ी ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि मेरा एक 21 साल पुराना दोस्त है रविप्रकाश, जो कि TV9 group का CEO भी है और promoter भी। मई के महीने में रवि ने मुझसे कहा कि यार विनोद तुम मुंबई आते जाते रहते हो, ज़रा कुछ वक्त निकाल कर टीवी 9 मराठी की टीम से मिल लो और देख लो कि चैनल में क्या दिक़्क़त है। सात आठ साल हो गए – कुछ बात बन नहीं रही। रवि पुराना दोस्त है, मेहनती है, जुझारू है- तो मना नहीं कर पाया। सोचा कि फिल्म के काम के दौरान जब समय मिलेगा तो जाऊंगा। इसी दौरान जून में धाकड़ रिपोर्टर रहे उमेश कुमावत ने बतौर मैनेजिंग एडिटर join कर लिया। उमेश से मैंने पूरे चैनल की FPC ( fixed Programing chart ) और पिछले तीन चार हफ़्तों की रेटिंग मांगी।
रेटिंग का अध्ययन करके पता चला कि चैनल लगातार चार नंबर पर है, तकरीबन हर शो की रेटिंग खराब है और सबसे बुरा हाल है निखिल वागले के शो Sade Tod का। मैंने टीम के साथ बैठकर नई FPC को तैयार किया और सुझाव दिया कि वागले के शो को रात नौ से दस बजे के बजाय आप शाम पांच से छह बजे करो। और नई FPC 21 जून से लागू करो।
21 जून से नई FPC लागू हो गई और दो ही हफ़्ते में चैनल नंबर चार से नंबर तीन पर आ गया।FPC में सिर्फ एक ही बदलाव नहीं हो पाया और वो था निखिल वागले का शो। वागले जी ने 19 जून को उमेश से कहा कि उन्हें एक महीने का और वक्त दिया जाए, वो शो को और बेहतर और आक्रामक बना रहे हैं। वागले का सम्मान करते हुए उन्हें एक महीने का और समय दिया गया। पर सुधार के बजाय रेटिंग और गिरती रही। इतना बुरा हाल कि आखिरी के आठ हफ़्तों में पांच हफ़्ते तो वागले का शो Top 100 में भी नहीं आ पाया ( pls check BARC ratings Marathi News Channels week 19- week 28) ।
इसके बावजूद उमेश ने ठीक एक महीने बाद 19 July को उनसे फिर प्यार से कहा कि अब आपके शो की टाइमिंग बदलनी ही होगी लेकिन वागले ने फ़रमान सुना दिया कि मैं शो करूंगा तो सिर्फ रात के नौ बजे, वर्ना नहीं करूंगा और अगले दिन हम क्या देखते हैं कि वागले Twitter में कूद पड़े कि : ” देखिए मेरे साथ क्या नाइंसाफ़ी हो गई , TV 9 ने अचानक मेरा शो बंद कर दिया..मेरे शो को सेंसर कर दिया गया ”
और फिर देखते ही देखते तमाम “liberal और Secular” पत्रकारों की पूरी बटालियन Twitter में मोर्चा लेकर खड़ी हो गई कि देखिए भाजपा और मोदी ने एक और निष्पक्ष और निडर आवाज़ को चुप करा दिया। कुछ English websites में ख़बरें भी छपने लगीं और इन सबके बीच निखिल वागले सच जानते हुए भी बहुत भोले बनकर
दूर से बैठा मैं ये सब देख रहा था और बेहद दुखी था कि कैसे मेरा एक हीरो मेरे ही सामने दम तोड़ रहा है। वागले के शो के बंद होने का दूर-दूर तक ना मोदी से वास्ता था और ना भाजपा से। पर दो दिन में Twitter पर ऐसा माहौल बना दिया गया कि : “मोदी ने एक बार फिर लोकतंत्र की हत्या कर दी। मोदी हर उस आवाज़ को दबा रहे हैं जो मोदी के विरोध में उठती है। ”
देखिए बाकी आवाज़ों के बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मैं जानता नहीं पर वागले के शो पर मैं पूरे विश्वास और दावे के साथ लिख रहा हूं और डंके की चोट पर कह रहा हूं कि शो बंद होने का एकमात्र कारण मैं था और मैं भी इसलिए क्योंकि मेरी जगह कोई भी व्यक्ति बदहाल चल रहे शो को या तो बंद करने का सुझाव देता या टाइमिंग बदलने की बात करता। जो मैंने किया। और मुझे खुलेआम ये मानने में कोई संकोच नहीं है। हो सकता है कि इस पोस्ट के बाद कुछ लोग मुझे कहें कि मैं भी मोदी की गोद में जाकर बैठ गया। कहने वाले कहते रहे, मुझे अपना सच पता है और वो मै लिखता रहूंगा।
निखिल वागले, आपने झूठ फैलाकर और झूठ के नाम पर खुद को शहीद बनाकर अच्छा नहीं किया। आपने मेरा एक हीरो मुझ से छीन लिया। Twitter पर मैं आपको 5-6 साल से फ़ॉलो कर रहा हूं। आपके tweets को आंख बंद करके RT करता रहा, यही सोचकर कि बाल ठाकरे से लड़ने वाला आदमी निडर और निष्पक्ष ही होगा लेकिन अब खुद को प्रासंगिक बनाने के लिए जिस तरह आप झूठ का सहारा ले रहे हैं , वो व्यक्ति मेरा हीरो नहीं हो सकता।
प्लीज़ मोदी के कंधे पर बंदूक़ रखकर खुद पर ही गोली चलाना बंद कीजिए । कुछ दिन के लिए आप शहीद ज़रूर बन जाओगे लेकिन मेरे जैसे आपको चाहने वालों का जब भ्रम टूटेगा तो आपकी बची खुची विश्वसनीयता भी ख़त्म हो जाएगी।
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