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राज्यसभा में जो किया वो सब पहले तय से था, इस्तीफा देने का मूड पहले से ही था

राज्यसभा में जो किया वो सब पहले तय से था, इस्तीफा देने का मूड पहले से ही था

18 जुलाई को राज्यसभा में मायावती ने अपने रवैये से सनसनी फैला दी, उसी दिन वैंकेया नायडू को उप राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भी करना था लेकिन मीडिया में सारी सुर्खियाँ मायावती के नाम रहीं. हाथ में अपनी स्पीच के पन्नों को लहराते हुए गुस्से में वो सब बोल गयी वो जो ध्यान खींचने के लिए जरुरी होता है. दरअसल मायावती सहारनपुर में हुए हिंसा पर अपनी बात रख रही थी लेकिन इसके बीच में उन्हें शिकायत हुई कि उन्हें समय कम मिला है और इतने समय में उनकी बात नही हो पायेगी. समय समाप्ति के बाद उन्हें रोका गया तो वो खफा हो गयीं. मायावती का पारा इस कदर चढ़ गया था कि उन्होंने झट से इस्तीफे की धमकी दे डाली और सदन से बाहर जाने लगीं.





मुद्दा दलितों का और दिया खुद का इस्तीफा

आपको बता दें कि जब मायावती सदन से बाहर जा रही थी तो उनके आसपास के कई नेताओं ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन वो सदन से ऐसे बाहर गयीं कि जैसे उनका ये कार्यक्रम पहले से तय था. दरअसल अभी बहुजन समाज पार्टी के दिन ठीक नही चल रहे हैं और बसपा सुप्रीमों बौखलाई हुई हैं और इससे निजात पाने के लिए उन्होंने दलितों का मुद्दा उठाया है.



खोयी हुई जमीन वापस चाहती हैं

मायावती को लगता है कि दलित वोटों पर उनकी ही पार्टी का हक़ है लेकिन इन दिनों बसपा से दलित वोटों का विश्वास कम हुआ है और इसी को देखते हुए मायावती ने अपनी तरफ से बड़ा दांव खेला है और बहुत सोच-समझकर इस्तीफे का दांव खेला है. मायावती इस दांव को खेलकर दलितों के बीच खोयी हुई जमीन वापस पाना चाहती हैं.





लोकसभा और विधानसभा में मिल चुकी है करारी हार

वैसे भी बीते 2104 के लोकसभा चुनाव और 2017 के यूपी विधानसभा के चुनाव के बाद मायावती की सियासत फीकी हो गयी है और उसकी छटपटाहट में मायावती ने इस्तीफा देने का बड़ा दांव खेलने की कोशिश की है.अप्रैल 2018 में वैसे भी मायावती का राज्यसभा कार्यकाल ख़त्म हो रहा है और ऐसे में उनकी विधानसभा में सीटों की स्थिति को देखते हुए फिर से राज्यसभा आने में बड़ी मुश्किल हो सकती है. मायावती हर वो कोशिश करना चाहती हैं जो उन्हें फायदा पहुंचा सकता है.



मोदी लहर में खाता भी नही खुला

2012 में यूपी विधानसभा के जब चुनाव हुए थे तो मायावती की पार्टी को 80 सीटें मिली थी लेकिन 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी स्थिति और ख़राब हो गयी और 80 से महज 19 सीटों पर पार्टी सिमट कर रह गयी. इससे बड़ा झटका तो उन्हें लोकसभा चुनाव में मिला था. मोदी लहर में बसपा की हालत इतनी ख़राब हो गयी कि उसका खाता ही नही खुल पाया. इन्हीं सब आकंड़ों के बाद मायावती की खीज और बढ़ गयी.




भीम आर्मी ने बढ़ा दी चिंताएं

जिस मुद्दे पर मायावती बोलते-बोलते इस्तीफा देने पर आ गयीं उस मामले में भी उनकी चुनौती कम नही है. दरअसल सहारनपुर में हुए दलित और राजपूतों के बीच संघर्ष में भीम आर्मी का नाम खूब बढ़-चढ़कर सामने आया. जिस तरीके से भीम आर्मी पर दलितों ने भरोसा जताकर बसपा से मुंह मोड़ा है, वो मायावती के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. मायावती को लगता था कि दलित वोट उन्ही के भरोसे है, लेकिन भीम आर्मी को दलितों ने हाथों-हाथ लिया.


सहारनपुर जाकर भी नही जीत पाईं दलितों का विश्वास

मायावती ने राज्यसभा में भी सहारनपुर में हुए हिंसा के मुद्दे को उठाया और कहा कि पीड़ित दलितों से मिलने के लिए वह सहारनपुर भी पहुंच थीं। वैसे आपको बता दें कि मायावती सहारनपुर जरूर गयीं लेकिन दलितों का दिल जीतने में नाकामयाब रहीं. इसको देखते हुए मायावती को चाहिए था एक और बड़ा दांव जिससे दलितों को लगे कि वो ही उनकी सच्ची हमदर्द हैं और इसके लिए ही उन्होंने 18 जुलाई को राज्यसभा में इस्तीफे का दांव भी चल दिया।



इसलिए छोड़ना चाहती हैं राज्यसभा

हालांकि अब देखना ये है कि उनका ये दांव कितना कारगर साबित होगा लेकिन इतना तो तय है कि अपने आप को दलितों का हमदर्द साबित करने के लिए वो खुद को शहीद घोषित करने के लिए भी तैयार हैं. वैसे उनके इस्तीफे को इस बात से भी जोड़कर देखा जा रहा है कि राज्यसभा में उनका कार्यकाल अगले साल समाप्त होने वाला है और ऐसे में इस्तीफे की धमकी कोई त्याग भावना नही है सिर्फ एक दिखावा ही है जो दलित वोटों को पाने की ललक बताता है.





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