आरक्षण की मूल भावना से खिलवाड़
आरक्षण एक ऐसा शब्द जिससे हर भारतीय नौजवान प्रभावित रहता है. जो उसका जीवन एवं आने वाला भविष्य तय करता है. आरक्षण की धारणा एक गरीब एवं निरीह परिवार या व्यक्ति को समाज के मुख्य धारा में लाने की सोच के साथ शुरू हुयी जो कि अच्छा है. यदि कोई व्यक्ति सामाजिक, मानसिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से पिछड़ा या शोषित है तो आरक्षण ही एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से उसे समाज के मुख्य धारा में लाया जा सकता है. आखिर विकास का हमारा यही मुख्य मुद्दा होना चाहिए तथा हर आदमी का विकास होना चाहिए. तभी एक सभ्य समाज का निर्माण होता है तथा लोगो की सोच भी बदलती है. लेकिन भारतीय राजनीतिक में आरक्षण एक राजनीतिक स्टंट बन गया है तथा इसे हर पार्टियां अपने अपने फायदे के लिए प्रयोग करती है, जो कि अच्छा नहीं है. आरक्षण से मनुष्य जाति का विकास होना चाहिए नाकि नेताओं की दुकान चलनी चाहिए. जैसा कि भारत में आरक्षण को लागू करके एक अच्छी विचारधारा लायी गयी जिससे समाज के निचले तबके का एक समुचित विकास हो, लेकिन आज देख कर ऐसा लगता है कि समाज में जिस व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिल रहा है, वह उसके लायक नहीं है, तथा जो आरक्षण के लायक है उसको नहीं मिल रहा है. जैसा कि विभिन्न पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है लेकिन उसमें भी बहुत से ऐसे व्यक्ति है जो आर्थिक एवं सामाजिक रूप से संपन्न है, उनको आरक्षण का लाभ मिलता है, जिसका यह मतलब हो गया कि जो सशक्त है, उनकों आरक्षण एवं जो उच्च जाति का निर्बल पक्ष है, उसे आरक्षण न मिलना एक घोर अन्याय है. सरकार का काम शोषित एवं निर्बल तबकों को आगे बढ़ाना है लेकिन किसी भी जाति में यदि निर्बल ही सही आरक्षण का लाभ नहीं पा रहा है तो कितना गलत है. जैसा कि विभिन्न जातियाँ आरक्षण की मांग करती है तथा जब चुनाव आता है तो राजनीतिक पार्टियां उस आग में घी डालने का काम करती है. जब समय आता है तो मुकर जाती है. हमें लगता है कि आरक्षण का फायदा जातियों को कम हमारे माननीय नेताओं को ज़्यादा मिलता है. विभिन्न प्रदेशो में विभिन्न जातियों में मांग शुरू कर दी. आज ऐसा लग रहा है कि आरक्षण एक मुद्दा है, जिससे पार्टियां जीताना चाहती है. हर जातियों में गरीब एवं अमीर तबके के लोग होते है. यदि उसका विकास करना है. तो सरकार का पारदर्शी नियम होना चाहिए, नाकि जो आर्थिक रूप से सम्पन्न है, उसे आरक्षण मिल जाए. ऐसा हुआ तो आरक्षण की मूल भावना कभी पूरी नहीं होगी, और विषमता और बढ़ती जाएगी. क्योंकि हर जातियों में अमीरी एवं गरीबी तबके के लोग पाए जाते है, तथा आरक्षण को राजनीति से दूर रखना चाहिये जिससे राजनीतिक पार्टियां अपनी दुकाने चलना बंद करे, आरक्षण से अभिप्राय सामाजिक समानता से होना चाहिए, लेकिन जब आरक्षण ही सामाजिक असमानता को बढ़ावा दे उससे बुरा क्या हो सकता है. अतः सरकार एवं समाज को यह सोचना चाहिए की आरक्षण की मूल भावना से खिलवाड़ न करके ,इसको समाज में जिनको ज़रुरत है उनको मिले तथा जो भी राजनीतिक पार्टियां समय समय पर इस मुद्दे को उभार कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती है, तथा आरक्षण की मूल भावना से खिलवाड़ करती है उनपर कार्यवाही होनी चाहिए. आरक्षण गरीबी के आधार पर दिया जाना चाहिए चाहे व्यक्ति उच्च जाती का हो या पिछड़ी ना कि जातियों के आधार पर. यही कारण है आज उच्च जातियों के लोगो की स्तिथि दयनीय है. डॉ. अजय कुमार चतुर्वेदी
आरक्षण एक ऐसा शब्द जिससे हर भारतीय नौजवान प्रभावित रहता है. जो उसका जीवन एवं आने वाला भविष्य तय करता है. आरक्षण की धारणा एक गरीब एवं निरीह परिवार या व्यक्ति को समाज के मुख्य धारा में लाने की सोच के साथ शुरू हुयी जो कि अच्छा है. यदि कोई व्यक्ति सामाजिक, मानसिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से पिछड़ा या शोषित है तो आरक्षण ही एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से उसे समाज के मुख्य धारा में लाया जा सकता है. आखिर विकास का हमारा यही मुख्य मुद्दा होना चाहिए तथा हर आदमी का विकास होना चाहिए. तभी एक सभ्य समाज का निर्माण होता है तथा लोगो की सोच भी बदलती है. लेकिन भारतीय राजनीतिक में आरक्षण एक राजनीतिक स्टंट बन गया है तथा इसे हर पार्टियां अपने अपने फायदे के लिए प्रयोग करती है, जो कि अच्छा नहीं है. आरक्षण से मनुष्य जाति का विकास होना चाहिए नाकि नेताओं की दुकान चलनी चाहिए. जैसा कि भारत में आरक्षण को लागू करके एक अच्छी विचारधारा लायी गयी जिससे समाज के निचले तबके का एक समुचित विकास हो, लेकिन आज देख कर ऐसा लगता है कि समाज में जिस व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिल रहा है, वह उसके लायक नहीं है, तथा जो आरक्षण के लायक है उसको नहीं मिल रहा है. जैसा कि विभिन्न पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है लेकिन उसमें भी बहुत से ऐसे व्यक्ति है जो आर्थिक एवं सामाजिक रूप से संपन्न है, उनको आरक्षण का लाभ मिलता है, जिसका यह मतलब हो गया कि जो सशक्त है, उनकों आरक्षण एवं जो उच्च जाति का निर्बल पक्ष है, उसे आरक्षण न मिलना एक घोर अन्याय है. सरकार का काम शोषित एवं निर्बल तबकों को आगे बढ़ाना है लेकिन किसी भी जाति में यदि निर्बल ही सही आरक्षण का लाभ नहीं पा रहा है तो कितना गलत है. जैसा कि विभिन्न जातियाँ आरक्षण की मांग करती है तथा जब चुनाव आता है तो राजनीतिक पार्टियां उस आग में घी डालने का काम करती है. जब समय आता है तो मुकर जाती है. हमें लगता है कि आरक्षण का फायदा जातियों को कम हमारे माननीय नेताओं को ज़्यादा मिलता है. विभिन्न प्रदेशो में विभिन्न जातियों में मांग शुरू कर दी. आज ऐसा लग रहा है कि आरक्षण एक मुद्दा है, जिससे पार्टियां जीताना चाहती है. हर जातियों में गरीब एवं अमीर तबके के लोग होते है. यदि उसका विकास करना है. तो सरकार का पारदर्शी नियम होना चाहिए, नाकि जो आर्थिक रूप से सम्पन्न है, उसे आरक्षण मिल जाए. ऐसा हुआ तो आरक्षण की मूल भावना कभी पूरी नहीं होगी, और विषमता और बढ़ती जाएगी. क्योंकि हर जातियों में अमीरी एवं गरीबी तबके के लोग पाए जाते है, तथा आरक्षण को राजनीति से दूर रखना चाहिये जिससे राजनीतिक पार्टियां अपनी दुकाने चलना बंद करे, आरक्षण से अभिप्राय सामाजिक समानता से होना चाहिए, लेकिन जब आरक्षण ही सामाजिक असमानता को बढ़ावा दे उससे बुरा क्या हो सकता है. अतः सरकार एवं समाज को यह सोचना चाहिए की आरक्षण की मूल भावना से खिलवाड़ न करके ,इसको समाज में जिनको ज़रुरत है उनको मिले तथा जो भी राजनीतिक पार्टियां समय समय पर इस मुद्दे को उभार कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती है, तथा आरक्षण की मूल भावना से खिलवाड़ करती है उनपर कार्यवाही होनी चाहिए. आरक्षण गरीबी के आधार पर दिया जाना चाहिए चाहे व्यक्ति उच्च जाती का हो या पिछड़ी ना कि जातियों के आधार पर. यही कारण है आज उच्च जातियों के लोगो की स्तिथि दयनीय है. डॉ. अजय कुमार चतुर्वेदी
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